आस्था मुंगेर

श्राद्ध पूर्णिमा को ठाकुरबाड़ी मंदिरों में उमड़ा जन-सैलाब, सावन में बरसे झूम झूम बदरा… पर आत्ममुग्ध हुए श्रोता,

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श्राद्ध पूर्णिमा को ठाकुरबाड़ी मंदिरों में उमड़ा जन-सैलाब,

सावन में बरसे झूम झूम बदरा… पर आत्ममुग्ध हुए श्रोता,

 मुंगेर। 

     मुख्यालय सहित जिले के विभिन्न ठाकुरबाड़ियों और मंदिरों  में श्रावण पूर्णिमा शुक्रवार को देर रात राधाकृष्ण के झूलन महोत्सव पर भक्तजनों का सैलाब उमड़ता रहा। लगा कि सामाजिक जीवन में व्याप्त कुरीतियों व कड़ुआहट से निराश आम जन लीला पुरूष श्रीकृष्ण की शरण में अपनी पीड़ा से मुक्ति के लिए चले आ रहे हैं। 

    कौड़ा मैदान, बड़ी एवं छोटी संगत, गोपाल मंदिर, सावरिया मंदिर , सोढ़ी घाट , बबुआ घाट, पूरबसराय, लाल दरवाजा, राम- जानकी मंदिर सहित बड़े और छोटे राजा की ठाकुरबाड़ियों में भजन संगीत समारोह आयोजित किये गये।

   आकर्षक व सुसज्जित झूलों पर कई स्थानों पर झुलाते हुए भक्तों ने भजन और भारतीय संगीत का देर रात तक आनंद उठाया। वहीं स्थिर चित्त वाले लगभग बारह बजे आरती के बाद प्रसाद ग्रहण कर घरों को लौटे।

   सावन की वर्षा पर आधारित “सावन में बरसे बदरिया…” गीत में जहां मिलन-विरह का जीवंत चित्रण संगीत शिक्षक अजय कुमार ने आह्लादक सुर में किया वहीं कबीर दास के जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति वाले भजन   ” चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय…, माटी कहे कुम्हार से …” के बाद ब्रह्मदेव ठाकुर ने कक्षा भजन कल्याण तथा भैरवी राग में सुनाये। 

   श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित रासलीला के बारे में स्वयं कृष्ण ने कहा था कि जिस परम आनंद की प्राप्ति द्वापर युग में पूर्व जन्मों के तप व ईश-उपासना के पश्चात गोपिकाओं के रूप में कृष्ण के संपर्क में की वैसा न भूत में और न भविष्य में कोई पा सकेगा। उक्त तथ्य बताते हुए प्रेम मंदिर में साहित्यकार एवं भागवत पुराण तथा श्रीमद्भागवत गीता के अध्येता मधुसूदन आत्मीय ने कहा कि श्रीकृष्ण सोलहों कला में निपुण थे जबकि श्रीराम चार ही कला के ज्ञाता थे। कृष्ण का जीवन जन्म से मृत्युपर्यंत चमत्कारिक गुणों और घटनाओं से जुड़ा रहा, जबकि राम माता दुर्गा की शक्ति प्राप्त करने के बाद भी रावण से जीत नहीं पा रहे थे। उन्हें पाता लोक के सहस्त्रबाहु ने युद्ध में अचेत कर दिया था तो लक्ष्मण मेघनाथ के बाढ़ से मूर्छित हो गये थे। कृष्ण योगेश्वर कहलाये जबकि राम मर्यादा पुरुषोत्तम। कृष्ण कृषि संस्कृति के उन्नायक और मुरलीधर के रूप में संगीत व नृत्यकला में पारंगत थे। उन्हें बंशीधर कहा जाना इसलिए अनुचित होगा कि वे बंशी बजाये ही नहीं। श्रीकृष्ण के दर्जनों नाम उनके गुणों पर आधारित हैं।

  अंत तक झूलन महोत्सव में शामिल लोगों ने भजनों के माध्यम से कृष्ण-महिमा को गुनते बुनते प्रसाद लेकर घरों को लौटे। सेवायत शरद सिंह ने पुष्प अर्पित कर झूला डोलाया तो पुजारी मुन्ना महाराज ने महाआरती की। आरती और प्रसाद वितरण में मंजू देवी, सविता कुमारी, तुलसी देवी सहित चंदन पंडित, प्रीति प्रभा, काजल, दीपशिखा, प्रीति मिश्रा, साम्भवी आदि सहयोग कर रही थीं।

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