बाबा धाम में जलाभिषेक पर रोक व श्रावणी मेला नहीं लगने से व्यवसायियों में निराशा, तारापुर ।25 जुलाई से श्रावणी मेला प्रारंभ हो रहा है। पहले जहां 15 दिन पहले से कांवरिया का चलना प्रारंभ हो जाता था। इस वर्ष पूरा मार्ग में सुनसान पड़ा हुआ है। हजारों लोगों के घरेलू खर्चा का हिसाब कांवरिया मेला पर टिकी होती थी । मेला नही होने से वैसे लोगों में निराशा का भाव स्पष्ट दिखती है । एक महीना का सावन मेला के लगातार चलने पर इलाके के अतिरिक्त दूरदराज के लोगों को रोजगार का अवसर मिलता था। उनके घर गृहस्थी की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक बाबा भोले की कृपा पर टिकी रहती थी। कहने को सावन एक मास का होता है । बाबा धाम की यात्रा सावन से 15 दिन पहले और पूरे भादो मास तक चलती रहती थी। सरकार के द्वारा कांवड़ मार्ग में किसी प्रकार की कोई बुनियादी सुविधा बहाल नहीं की गई । झारखंड सरकार द्वारा बाबा रावणेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग पर सावन मास में जलाभिषेक रोक दिए जाने के कारण कांवड़ मेला स्थगित कर दिया गया है । कांवड़ मेला प्रारंभ नहीं होने के कारण बुनियादी आधारभूत संरचना का भी मरम्मतीकरण का कार्य नहीं कराया गया। जिससे आने वाले वर्षों में बनी बनाई संरचना बर्बाद होने की राह पर है। गोगाचक गांव के विष्णुदेव सिंह ने कहा कि मेला नहीं होने से परेशानी है। मेला चलते रहने से हम लोग कुछ लोगों को रोजगार देने की स्थिति में होते थे। चार पैसा लगाते थे तो दो पैसा कमा लेते थे। घर का कामकाज अच्छे से निपट जाता था। मेला नहीं होने से हम लोग निराश हैं। काजीचक मिल्की के मंटू शर्मा ने कहा कि दुकान रखते थे । कांवरिया नहीं चल रहे हैं ।इसी कमाई से साल भर रोजी रोटी चलती थी। कहीं से कोई आमदनी नहीं है। सरकार ने कोई दूसरी व्यवस्था नहीं की है। हम लोग इसी पर आधारित थे। मंदिर खुलता नहीं है। कांवरिया चलते नहीं हैं । जो पूंजी लगाई थी वह बांस और त्रिपाल बर्बाद हो गया। हजारों परिवार की रोजी रोटी चलती थी। वर्तमान में कर्ज लेकर भी दुकान खोलने का कोई फायदा नहीं है। मंदिर खुला होता तो कर्ज भी लेते । बोल बम की सेवा करते थे । भोलेनाथ का आशीर्वाद होता था ।आगे कुछ सूझ नहीं रहा है। बिहमा गांव के विवेक कुमार सिंह ने कहा कि दुकान रखने से कमाई होती थी। घर का खर्च भी चलता था तथा खेती के लिए भी पूंजी हो जाती थी। सरकार ने कांवड़ मेला को बंद किया तो इसका विकल्प भी उन्हें सोचना चाहिए था। जितनी पूंजी लगाए थे वह बांस बल्ला त्रिपाल सब खराब हो गया है। सरकारी व्यवस्था 1 महीने के लिए होती थी । सावन के 1 महीने में प्रतिदिन औसतन एक लाख कांवरिया पैदल बाबा धाम को जाते थे । सरकारी व्यवस्था ऊंट के मुंह में जीरा समान होती थी । इतनी बड़ी भीड़ को बुनियादी सुविधा स्नान शौचालय पानी भोजन बिजली दवा आदि निजी दुकानदारों के द्वारा उपलब्ध कराए जाते थे। खाद्य पदार्थ ठंडा पेय फल दूध दही अगरबत्ती गूगल आदि कई चीजों की बिक्री लाखों में होती थी। मजदूरों को रोजगार भीख मांगने वालों सहित लोकगीत एवं भजन गायक की आमदनी भी इससे जुड़ी थी।
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