मानवता में अभद्रा के लिए राजनीति जिम्मेवार : स्वामी प्रेम अनुराग,
मुंगेर।” धर्म मानव-चेतना को सदियों से ऊपर उठाता रहा है। जो कुछ भी मनुष्य आज है ,कितनी भी थोड़ी जो चेतना उसके पास है उसका सारा श्रेय धर्म को है।” उपरोक्त बातें स्वामी प्रेम अनुराग ने कही। वे राजनीतिक और धर्म पर अपने विचार प्रगट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीति एक अभिशाप रही है, एक विपदा और जो कुछ भी मानवता में अभद्र है, राजनीति उस सबके लिए जिम्मेवार है। उन्होंने कहा कि नेता चाहते हैं कि धर्म राजनीति में हस्तक्षेप ना करें । मैं चाहता हूं कि राजनीति धर्म में हस्तक्षेप ना करें । उच्चतर को हस्तक्षेप का अधिकार है, निम्रतर को कोई अधिकार नहीं । राजनीति के पास शक्ति है। धर्म के पास केवल प्रेम ,शांति और दिव्य का अनुभव है । धर्म शक्ति की आकांक्षा नहीं है, धर्म खोज है सत्य की, परमात्मा की और यह खोज ही धार्मिक व्यक्ति को विनम्र, सरल और निर्दोष बना देती है । राजनीति सदियों से, बस लोगों की हत्या करती रही है, उन्हें विनष्ट करती रही है– राजनीति का सारा इतिहास अपराधियों का, हत्यारों का इतिहास है। धर्म उसके लिए समस्या पैदा करता है, क्योंकि धर्म ने जगत को चेतना के शिखर प्रदान किए हैं– गौतम बुद्ध, जीसस ,नानक, कबीर । यह पृथ्वी के नमक है। राजनीति ने जगत को क्या दिया है ? चंगेज खां ? तैमूरलंग ? सिकंदर ? नेपोलियन ? ये सबके सब अपराधी हैं। सत्ता में होने के बजाय इन्हें सींखचों के पीछे होना चाहिए। ये अमानवीय हैं। वे आध्यात्मिक रूप से बीमार लोग हैं । शक्ति और आधिपत्य की महत्वकांक्षा बीमार मनो में ही उपजता है । यह हीनता की ग्रंथि से उपजती है, जो लोग हीनता- ग्रंथि से ग्रसित नहीं है, वह शक्ति की फिक्र नहीं करते उनका सारा प्रयास शांति के लिए होता है। जीवन का अर्थ केवल शांति में ही जाना जा सकता है –शक्ति मार्ग नहीं है। शांति, मौन, अनुग्रह ,ध्यान ये धर्म के मूलभूत अंग है।