गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नियमित टीकाकरण है आवश्यक,
मुंगेर।
गर्भस्थ शिशु की अच्छी सेहत के लिए गर्भवती महिलाओं और बच्चों का नियमित टीकाकरण बहुत आवश्यक है। जिन गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों को नियमित टीकाकरण की सभी खुराक लग जाती, उस बच्चे की रोग – प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है। वह जल्दी किसी भी प्रकार की बीमारी की चपेट में नहीं आता है। यदि वह किसी बीमारी की चपेट में आ भी जाता तो वह उससे जल्द ही उबर भी जाता है। बावजूद इसके जिन गर्भवती महिलाओं और बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाता है।

कहते हैं पदाधिकारी :-
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को गंभीर बीमारी से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण बेहद जरूरी है। इससे न केवल गंभीर बीमारी से बचाव होता है, बल्कि सुरक्षित और सामान्य प्रसव को भी बढ़ावा मिलता है। इसके साथ ही बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी बेहतर तरीके से होता है। नियमित टीकाकरण पर जोर देते हुए डॉ. रौशन ने कहा कि नियमित टीकाकरण एक स्वस्थ राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कायर्क्रम है, जो गर्भवती महिलाओं से आरंभ होकर शिशु के पांच साल तक होने तक नियमित रूप से दिये जाते हैं। ये टीके शिशुओं को कई प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं। शिशुओं को दिया जाने वाला टीका शिशुओं के शरीर में जानलेवा संबंधित बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित और मजबूती प्रदान करते हैं। इस प्रकार कई तरह की जानलेवा बीमारियों से शिशुओं को बचने के खास टीके विकसित किये गये हैं, जिनका टीकाकरण करवाना आवश्यक है।
कहां है नियमित टीकाकरण की व्यवस्था :-
उन्होंने बताया कि नियमित टीकाकरण का आयोजन जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर हर सप्ताह बुधवार और शुक्रवार को होता है। जरूरत पड़ने पर अन्य दिन भी टीकाकरण किया जाता है। इसके माध्यम से दो वर्ष तक के बच्चों को टीके लगाए जाते हैं। नियमित टीकाकरण बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कई गंभीर बीमारियों से बचाव करता है। इसके साथ ही प्रसव के दौरान जटिलताओं से सामना करने की भी संभावना नहीं के बराबर रहती है। गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण होने से संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिलता है।
कौन-कौन से हैं जरूरी टीके :-
जन्म होते ही – ओरल पोलियो, हेपेटाइटिस बी, बीसीजी
डेढ़ महीने बाद – ओरल पोलियो-1, पेंटावेलेंट-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1, रोटा-1
ढाई महीने बाद – ओरल पोलियो-2, पेंटावेलेंट-2, रोटा-2
साढ़े तीन महीने बाद – ओरल पोलियो-3, पेंटावेलेंट-3, एफआईपीवी-2, रोटा-3, पीसीवी-2
नौ से 12 माह में – मीजल्स-रुबेला 1, जेई 1, पीसीवी-बूस्टर, विटामिन ए
16 से 24 माह में:
मीजल्स-रुबेला 2, जेई 2, बूस्टर डीपीटी, पोलियो बूस्टर, जेई 2
ये भी हैं जरूरी:
5 से 6 साल में – डीपीटी बूस्टर 2
10 साल में – टेटनेस
15 साल में – टेटनेस
गर्भवती महिला को – टेटनेस 1 या टेटनेस बूस्टर ।