हरि सिंह महाविद्यालय के सेवानिवृत्त पूर्व प्राचार्य प्रो. उमेश कुवंर उग्र का निधन,
मुंगेर।
हरि सिंह महाविद्यालय के सेवानिवृत्त पूर्व प्राचार्य प्रो. उमेश कुवंर उग्र का निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे। उन्होंने अपने पीछे हरा भरा परिवार छोड़कर गए। उनके निधन की खबर सुनते ही बुद्धिजीवी, साहित्य प्रेमियों, छात्र-छात्राओं, पत्रकारों, पदाधिकारियों एवं शहरवासियों में शोक की लहर दौड़ गई।

प्रो. उमेश कुवंर उग्र के फेसबुक वॉल से :-
जब कर्पूरी ठाकुर आए थे उनके निवास पर :-प्रो. उमेश
कुवंर उग्र ने अपने फेसबुक वॉल पर 2 वर्ष पूर्व लिखा था कि
जब पूज्यवर कर्पूरी जी मेरे निवास पर आये।
1974 का आंदोलन प्रारम्भ था, यह कोई आत्म श्लाघा की बात नहीं है,बल्कि सचाई है कि खड़गपुर में मैंने आंदोलन को त्वरित किया था, यद्यपि हमारे नेता शमशेर बाबू थे। मेरे साथ प्रमुख रूप से बाज़ार से बज़रनगलाल सहा, सकहरा के श्याम सुंदर सिंह सम्प्रति कोरिया के पैक्स अध्यक्ष, कल्याणपुर के कृष्णकुमार सिंह मुखिया, पहाड़पुर के स्वर्गीय विष्णुदेव सिंह आज़ाद, मोहनपुर के स्वर्गीय विनोद कापड़ी छात्र नेता,अनन्त सत्यार्थी पूर्व विधायक सहित कई लोग सक्रिय थे। खड़गपुर में नामचीन नेताओं की मीटिंग प्रायः मैं आयोजित करता था। इसी क्रम में रामजीवन सिंह पूर्व सांसद, उससमय के छात्र नेता अश्वनी चौबे,नरेंद्र सिंह, शुशील कुमार मोदी की सभाएं मैं आयोजित कर चुका था। आचार्य राम मूर्ति, पूज्यवर जे पी की सभा आयोजित करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो चुका था, आंदोलन पीक पर था। मैं झीलपथ अवस्थित खोका बाबू के मकान में रहता था। खोका बाबू मुझसे किराया नहीं लेते थे। खाना खर्चा मेरी फुआ शमशेर बाबू की माँ बहन करती थी। मई महीना की गर्मी मैं अपनी खाट पर सोया था, अकस्मात कोई कीबार खटखटाया, कीबार खोलने पर मैं दंग रह गया सामने गमछा में धोती लपेटे कर्पूरी जी खड़े थे। उन्होंने कहा जल्दी कीबार लगाऊ पोलिस पीछा कर रहल ह।मैंने कीबार लगा दिया। उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ ख़िलाऊ मैंने उन्हें कटोरी में चने के सत्तू के साथ दूध चीनी मिलाकर खिलाया। उन्हें अपनी खाट पर सुलाया। स्वयं नोचे फर्श पर चटाई बिछा कर सो गया। साम में डाकबंगला में उनकी महती सभा हुई भीड़ उमड़ पड़ी। शाम का भोजन शमशेर बाबू के यहाँ मछली भात हुआ। रात में मेरे यहाँ ठहरे। सुबह उन्हें तारापुर रामपुर जाना था उनकी जेब मे एक चवनी नहीं थी। मैं उनके साथ रामपुर पहुंचा, उस समय तारापुर का किराया डेढ़ रुपया था। वहां भी उनकी महती सभा हुई, भोजन भात हुआ। आयोजकों में प्रसांत जी पूर्व विधायक, भाई चन्दर सिंह राकेश,बड़ौनीया के स्वर्गीय दिवाकर सिंह और कई साथी थे।प्रथम विधायक वासुकी नाथ राय भी उपस्थित थे। शायद वे नजलिंगपा के संगठन कोंग्रेस में थे।लौटने वक्त मैंने कर्पूरी जी की जेब मेचुपके से एक दस टकिया डाल दिया और जे पी आंदोलन के साथियों से मिलते हुए पुनः खड़गपुर लौट गया। मित्रों इस स्मृति को मैंने इसलिए लिखा है कि आज के सार्वजनिक जीवन के लोग पूज्यवर कर्पूरी जी से प्रेरणा लें खासकर जो जे पी आंदोलन की देन हैं। मेरे जैसे आंदोलन के लाखों साथी खाद बन गए। जिससे की भावी पीढ़ी पुष्ट हो,डॉक्टर लोहिया का भी यही सपना था।जे पी अमर हों,कर्पूरी जी अमर हों अमर हों।जे पी आंदोलन के सभी सेनानियों को नमन।