नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर कलाईमेंट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ विषय पर उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन,
क्लाइमेट फ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन, सेव एनर्जी, हारवेस्ट रेन वाटर और वेस्ट मैनेजमेंट कर कलाईमेंट चेंज के खतरे से रह सकते हैं सुरक्षित : सिविल सर्जन,
मुंगेर। क्लाइमेट फ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन, सेव एनर्जी, सोलर एनर्जी, हारवेस्ट रेन वाटर और वेस्ट मैनेजमेंट कर क्लीमेंट चेंज के खतरे से रह सकते हैं सुरक्षित । उक्त बातें सिविल सर्जन डॉ. हरेन्द्र आलोक ने कही। वे क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (आरपीएमयू) सभागार मुंगेर में आयोजित नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर कलाईमेंट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ विषय पर उन्मुखीकरण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज को ले भारत सरकार रिन्यूएबल एनर्जी के प्रोमोशन में काफी प्रतिबद्धता के साथ जुटी है। हमलोग भी अपने नियमित जीवन में कलाईमेंट फ्रेंडली ट्रांसपोर्टेशन जिसमें कम से कम कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होने के साथ ही कम से कम वायू प्रदूषण हो का इस्तेमाल कर हम बहुत सारी बीमारी जैसे डायबिटीज, हार्ट डिजीज और कैंसर जैसी बीमारियों को भी मात दे सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को बढ़ावा दें। ताकि कम से कम वायू प्रदूषण हो। लोगों को जागरूक करना है कार्यशाला का उद्देश्य : नसीम,
जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के जिला कार्यक्रम प्रबंधक नसीम रजि में बताया कि नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर क्लाइमेट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक स्तर पर लोगों को, हेल्थ केयर सर्विस प्रोवाइडर और पॉलिसी मेकर को आम आदमी के स्वास्थ्य पर कलाईमेंट चेंज के पड़ने वाले प्रभाव के प्रति जागरूकता पैदा करना है। इसके साथ ही कलाईमेंट चेंज की वजह से होने वाली कमजोरी या बीमारियों के प्रति भी लोगों को जागरूक करना है। उन्होंने बताया कि कलाईमेंट चेंज एक वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। इसमें तापमान, वर्षा भी शामिल है। इसकी वजह से अर्थ वार्मिंग और समुद्र तल में बढ़ोतरी भी होने लगता है। तापमान में बढ़ोतरी होने से हीट स्ट्रोक और हीट एग्जॉशन जिसमें तापमान बढ़ने से शरीर से अत्यधिक मात्रा में पसीना निकलने लगता है साथ ही भारी वर्षा की वजह से प्रलयंकारी बाढ़ की स्थिति भी पैदा हो जाती है। ऐसी स्थिति में कई बीमारी जैसे हैपेटाइटिस, डायरिया, सांस संबन्धी बीमारी और वेक्टर बोर्न डिजीज के का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके अलावा हवा में जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ जाने पर ह्रदय रोग और सांस संबंधी कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कलाईमेंट चेंज से प्रभावित होती है आबादी : विकास,
जिला स्वास्थ्य समिति मुंगेर के जिला कार्यक्रम समन्वयक विकास कुमार ने बताया कि कलाईमेंट चेंज की वजह से सभी जगह की आबादी प्रभावित होती है लेकिन कुछ खास जगह या रिजन, समूह कलाईमेंट चेंज के हाईयर रिस्क में आते हैं इसमें कुछ खास आयु वर्ग जिसे बच्चे और बुजुर्ग और खास जेंडर जैसे गर्भवती महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने बताया कि 2030 से 2050 तक कलाईमेंट चेंज का सम्भावित समय है।तकनीकी पहलूओं से कराया गया अवगत :-
इस अवसर पर केयर इंडिया मुंगेर की डीटीओ ऑफ डॉ. नीलू ने कलाईमेंट चेंज के तमाम तकनीकी पहलूओं से उपस्थित सभी स्वास्थ कर्मियों को रूबरू कराया । कार्यशाला में जिला भर के सभी पीएचसी और सीएचसी से आए मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, प्रखण्ड स्वास्थ्य प्रबंधक और प्रखण्ड सामुदायिक उत्प्रेरक थे।
