खास खबर

भारतेंदु हरिश्चंद्र की मनाई गई 171 वीं जयन्ती,

531 Views

भारतेंदु हरिश्चंद्र की मनाई गई 171 वीं जयन्ती,

छपरा।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह तथा नवजागरण के अग्रदूत कहे जाने वाले युग प्रवर्तक रचनाकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की 171 वीं जयन्ती  लक्ष्मी नारायण यादव अध्ययन केंद्र, रामजयपाल महाविद्यालय, छपरा में छपरा इप्टा तदर्थसमिति की ओर से मनाई गई। ।  जयन्ती समारोह की शुरुआत भारतेंदु जी के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर किया गया।  रंजीत गिरि तथा विनय विनीत द्वारा मधुर गायन-वादन किया गया। इप्टा का ‘प्लैटिनम जुबली वर्ष’ चल रहा है इसलिए पहले गीत के तौर पर इप्टा का गीत ‘फिर नये संघर्ष का मौका मिला है’ गाया गया तत्पश्चात ‘भारत-दुर्दशा’ के आखिरी गीत का गायन किया गया। कार्यक्रम सारण की धरती पर हो और सारण के धरोहर तथा भोजपुरी के हस्ताक्षर भिखारी ठाकुर तथा महेन्द्र मिसिर को कैसे नहीं याद किया जाता, इसलिए दोनों महापुरुष के एक-एक गीत को गाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम को स्थगित किया गया। गायन-वादन के बाद विचार-गोष्ठी को विधिवत शुरू किया गया। ‘भारतेंदु की जनचेतना और वर्तमान चुनौतियाँ’ विषय पर आयोजित विचार-गोष्ठी की अध्यक्षता बिहार विधानपरिषद सदस्य प्रो. वीरेन्द्र नारायण यादव ने किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. दिनेश पाल द्वारा विषय प्रवर्तन किया गया। डॉ.रणजीत कुमार ‘सनेही’ विस्तार से विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि साहित्य व भाषा में जन को लोक से भले ही जोड़कर देखा जाता है लेकिन मेरी दृष्टि में जनचेतना का मतलब मजदूरों की चेतना है। भारतेंदु की जनवादी चेतना बंग की यात्रा के बाद निखर कर सामने आयी। उनकी रचनाओं में राजभक्ति तथा देशभक्ति साथ-साथ देखने को मिलता है। डॉ. अमित रंजन ने बताया कि भारतेंदु जी कविताओं में प्रेम व प्रकृति चित्रण अधिक है लेकिन उनके नाटकों व प्रहसनों में जनचेतना देखने को मिलती है। उन्होंने चूरन जैसे मामूली चीज से भ्रष्टाचार पर व्यंग्यात्मक चोट करते हैं। डॉ. चन्दन श्रीवास्तव ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाओं को उस काल और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए देखना चाहिए। उनके समय में अफीम का व्यापार चरम पर था लेकिन कोई साहित्यकार या नेता उसपर मुँह नहीं खोला है। जिस समय भारतेंदु जी लिख रहे थे उस समय लोग साम्प्रदायिक पहचान में लगे हुए थे और आज भी देश की स्थिति कुछ वैसी ही है। प्रो. सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि नाटक में सामाजिकता अधिक होती है। ब्रिटिश हुकूमत के प्रति जो राजभक्ति भारतेंदु के देखने को मिलती है वह अनायास ही नहीं है। उस वक्त कई बुद्धिजीवी अंग्रेजों के आगमन को अभिशाप नहीं बल्कि वरदान बताते हैं। राजेंद्र महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अशोक कुमार सिन्हा ने भारतेंदु की जनचेतना को वर्तमान चुनौतियों से जोड़ते हुए कहा कि आज भी आधी आबादी में कर्मकाण्ड तथा अंधविश्वास के प्रति झुकाव है जबकि ‘बालाबोधनी’ में ही उन्होंने इसे त्यागने को कहा था। महिला-सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे। आगे कहा कि हमें भारतेन्दु मण्डल से प्रेरणा लेते हुए छपरा में एक साहित्यिक मण्डल तैयार करना चाहिए। डॉ. लालबाबू यादव ने कहा कि तीन ऐसे महान व्यक्तित्व जिन्हें बहुत कम जीवन मिला लेकिन उन तीनों ने लम्बी लकीर खिंची है, उनका नाम है- स्वामी विवेकानंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र एवं क्रिस्टोफर कॉडवेल। भारतेंदु की जनचेतना को विकसित करने में 1857 के सिपाही विद्रोह और तत्कालीन राजनीतिक घटनाक्रम को डॉ. लालबाबू ने सहायक बताया। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. वीरेन्द्र नारायण यादव ने बताया कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को समग्रता में देखना होगा। उनका दादरी मेला, बलिया में दिया गया भाषण उनके प्रगतिशील चेतना का द्योतक है। भारतवर्ष की उन्नति किस प्रकार की जा सकती है इसे उन्होंने उदाहरण के माध्यम से समझाने की कोशिश की है। आज बेरोजगारी एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसपर भारतेंदु जी ने उसी समय ग्रेजुएट बेरोजगारों पर अपनी लेखनी चलाई है। विचार-गोष्ठी में एसएफआई के राज्याध्यक्ष शैलेन्द्र यादव तथा डॉ. राजगृही यादव आदि ने भी अपना विचार व्यक्त किया।इस अवसर पर भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर और भिखारी ठाकुर आश्रम के आजन्म अध्यक्ष नागेन्द्र राय और देश के वरिष्ठ पत्रकार, इंडिया न्यूज़ के ग्रुप एडिटर तथा डब्ल्यूजेएसए के मानद सदस्य श्री राणा यशवंत के पिता और जगदम कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. बबन प्रसाद सिंह के असामयिक निधन पर शोक प्रस्ताव और दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि दी गयी।  कार्यक्रम का संचालन छपरा इप्टा तदर्थ समिति के संयोजक डॉ. अमित रंजन ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन बिहार इप्टा के कार्यकारिणी सदस्य श्यामनारायण शानू ने किया। शैलेंद्र यादव, डॉ. राजगृही यादव, प्रो. सिद्धार्थ शंकर, प्रो. अशोक कुमार सिन्हा, डॉ. लालबाबू यादव एवं प्रो. वीरेन्द्र नारायण यादव ने भारतेंदु, उनकी रचना, उनकी रचना में जनचेतना एवं वर्तमान चुनौतियों पर विस्तार से अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमित रंजन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्यामनारायण शानू ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *