झारखंड स्पेशल रिपोर्ट

राजभाषा हिंदी एवं राष्ट्रकवि दिनकर जयंती के उपलक्ष्य में सृजन संसार के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन,
कवियों की दमदार प्रस्तुतियों ने सबका मन मोहा,

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राजभाषा हिंदी एवं राष्ट्रकवि दिनकर जयंती के उपलक्ष्य में सृजन संसार के तत्वावधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन,
कवियों की दमदार प्रस्तुतियों ने सबका मन मोहा,

रांची।

राजभाषा हिंदी और राष्ट्रकवि दिनकर की जयंती के मौके पर सृजन संसार की मासिक गोष्ठी ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम से वरिष्ठ कवयित्री डॉ. सुरिन्दर कौर नीलम की अध्यक्षता में हुई। मुख्य अतिथि नेहाल हुसैन सरैयावी,  विशिष्ट अतिथि प्रयागराज उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिशिर सोमवंशी ,सुनील सिंह बादल शामिल हुए। कार्यक्रम संयोजन सदानंद सिंह यादव ने की । मंच संचालन संगीता सहाय “अनुभूति ” कर रही थी। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. रजनी शर्मा चंदा द्वारा प्रस्तुत हे -“शारदे मां ,हे शारदे मां …अज्ञानता से हमें तार दे मां … ” से हुआ । सभी साहित्यकारों ने सदानंद सिंह यादव को लेखन एवं संगीत के क्षेत्र में तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने पर उन्हें बधाई दी ।  डॉ. रजनी शर्मा चंदा ने हिंदी की महिमा पर अपनी रचना प्रस्तुत की ।सदानंद सिंह यादव ने -“जन जन की भाषा है हिंदी हिंदी से तुम प्यार करो / देश-विदेश में फैलाऐगे/ आज यही इकरार करो … की प्रस्तुति दी । दानिश्वर सिंह ने- अतीत अच्छा था या बुरा/ दफन हो चुका कालचक्र में / वर्तमान क्यों बिगाड़रे बैठे हो / आने वाले कल की फिक्र में …। मीनू मीना सिन्हा मीनल ने दिनकर की रचना -समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध। गीता चौबे गुंज ने- जो लतन के लिए जान लुटाते रहे/ इस जमीं सितारे बिछाते रहे … कल्याणी झा कनक ने -बड़ी प्यारी सरल बोली / लगे न्यारी सहज हिंदी /कभी कोमा लगाए हैं / कभी लगती भली बिंदी….। रेनू झा ने हिंदी दिवस पर- गुनगुनाती हवा हिंदी भाषा भारत की शान… की प्रस्तुति दी । पुष्पा सहाय गिन्नी ने – हिंदी है हमारी मातृभाषा / क्यों नहीं हमें मान हो…। सूरज श्रीवास्तव ने -आज भले हैं अंधियारा /कल सूरज चमकेगा / हमको है विश्वास एक दिन /अंबर दमकेगा …। बीना प्रसाद बिन्नी ने अपनी प्रस्तुति देते हुए -प्राचीन समृद्ध और संस्कृत युगों से /हिंदी की शान शिव जटा में जैसे /शोभित गंगा हिंदी भारत की पहचान ….। सुरिंद्र कौर नीलम ने – ओज का उजास लिए / हिंदी का आकाश लिए / भरता हूंकार था जो दिनकर नाम था … । मनीषा सहाय सुमन ने – विद्रोह, विस्फोट ओज ही लेखनी की धार है / राष्ट्रीय भाव उनकी कविताओं का सार है …। सुधा कर्ण ने -हिंदी हमारी महकती, चहकती गुनगुनाती,लजाती है किसी नायिका की तरह।  प्रवीण परिमल ने -हां जला डाली है मैंने/ तेरी सारी चिट्टियां, जिंदगी मुझसे तुझे /अब कोई खतरा नहीं…। रंजना वर्मा उन्मुक्त ने – तुलसी कबीर सूर की अरु मीरा की गान/ दिनकर बच्चन पंत की समझो ये है शान …।  नेहाल हुसैन सरैयावी ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा कि- आसमां पर कभी पत्थर ना उछाला करना /लौट कर फिर वही पत्थर तेरे सर आता है/ भूल से भी कभी भूले को ना भुला कहना/ शाम का भूला भी फिर लौट के घर आता है….।डाॅ. शिशिर सोमवंशी ने- सोचो बदन से सांस का रिश्ता/ किस बंदे के काबू का है/ इस मेले में जो भी आया / चार दिनों की सब है माया… । मंच संचालन करते हुए संगीता सहाय अनुभूति ने-  हिंदी है हम/ हिंदी है वतन /हिंदी हमारी शान …. की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम में चार चांद लगाया ।धन्यवाद ज्ञापन सदानंद सिंह यादव ने किया।

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