प्रगतिशील बुद्धि जीवी साहित्य मंच की बैठक सह कवि- गोष्ठी का आयोजन,’बिक गए घर कई बिक गई खेतियाँ तब कहीं बैठ पाती है बेटियां’ : करूणा सुमन,
मुंगेर ।
गुरु पूर्णिमा पर सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए स्थानीय आरसीआई पब्लिक स्कूल के प्रांगण में, प्रगतिशील बुद्धि जीवी साहित्य मंच के द्वारा बैठक सह कवि- गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष संजीव प्रियदर्शी ने की तथा संचालन कवि शशि आनंद अलबेला कर रहे थे। कवि गोष्ठी की शुरुआत सर्व प्रथम क्रांतिकारी कवि नागेश्वर नागमणि ने ‘बाबू जी, असल बात यह है कि ये कलयुग है, और कल पुर्जे से चलने वाला युग है …, सुनाया। कवि प्रो. शिशिर कुमार सिंह ने कहा कि ‘अंगराई ली नवजीवन ने, बहुत दिनों के बाद, कोरोना की दुखद त्रासदी दी, हुई पुरानी याद …।’ कवि पशुपति नाथ भारती ने ‘ हम हंसना भी जानते हैं और रूलाना भी और दुश्मनों को जमीं के अंदर गाड़ देना भी ….. प्रस्तुत किया। संचालन कर रहे कवि शशि आनंद अलबेला ने गजल के माध्यम से ‘ आ चलें अब देख आयें लोग हैं किस हाल में, रहबरों की रहबरी से हैं घिरे जंजाल में … सुनाया। कवियत्री कुमारी राम लता ने बहुत ही सुन्दर रचना सुनाई जो ‘ एक भी वादे न निभाये गए, लहू में डूबो कर गुलाब सजाये गये …। अध्यक्षता कर रहे मंच के अध्यक्ष संजीव प्रियदर्शी ने अपनी रचना के माध्यम से कहा कि ‘कौन सा ये बक्त है हर किसी से हारता, तुच्छ कामना लिए मनुज मनुज को मारता …। कवि नरेंद्र मंडल जी ने छंद बध्द रचना सुनाई ‘आशा व निराशा जीवन में, धूप और छांव के समान, उत्साह को सुजननी आशा, मानव को करती बलवान। खड़गपुर से आये जागृति साहित्यिक मंच के अध्यक्ष ज्योतिष चन्द्र ने कहा कि फूल तारों का जब संगम होगा,अहा ! वह दृश्य कितना विहंगम होगा …। कवियत्री करूणा सुमन ने कहा कि ‘बिक गए घर कई बिक गई खेतियाँ तब कहीं बैठ पाती है बेटियां’। कवियत्री बरखा कुमारी सुमन ने अपनी बहुत ही सुन्दर रचना के माध्यम से कहा कि ‘आज बहुत दिनों बाद फिर आई याद तुम्हारी, मेरे मन को हर्षा गई …। अध्यक्षीय भाषण के उपरांत कवि गोष्ठी समापन की घोषणा की गई।