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 7 फरवरी से 9 फरवरी तक बीसवां अंग नाट्य यज्ञ का आयोजन,

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7 फरवरी से 9 फरवरी तक बीसवां अंग नाट्य यज्ञ का आयोजन,
रंगमंच कला थियेटर को चार दशक से संजीवनी देने की चला रहे हैं मुहिम : संजय-अभय,
विरासत में मिली है दोनों भाइयों को रंगमंच कला का गुण,
परिवार के तीन पीढ़ियों का है रंगमंच कला से जुराव
मुंगेर संवाददाता।
आज के भागदौड़ और आधुनिक युग में मनोरंजन के बढ़ते विकल्प के सामने रंगमंच कला दम तोड़ने के कगार पर है मनोरंजन के बढ़ते विकल्प से भारतीय संस्कृति के धरोहर रंगमंच कला के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं । जबकि एक समय लोगों के लिए मनोरंजन का सबसे सशक्त माध्यम रंगमंच कला माना जाता था। सोशल मीडिया और मल्टीप्लेक्स के आज के दौड़ में मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड के अंतर्गत गांधीपुर निवासी दो भाई संजय और अभय विलुप्त हो रही रंगमंच को संजीवनी देने की मुहिम चला रहे हैं।

रंगमंच के अस्तित्व को बचाने के जद्दोजहद में जुटे संजय और अभय की माने तो रंगमंच ही उनके जीवन है। संजय और अभय ने रंगमंच की कला को आज भी बरियारपुर जैसे सुदूर ग्रामीण इलाके में जीवित रखे हुए हैं । रंगमंच के क्षेत्र में दोनों भाई ने राज्य स्तरीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कई अवार्ड अर्जित किए हैं । आज अभिनय के क्षेत्र में केरियर चयन करने वालों के लिए संजय और अभय प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं। पिछले 40 वर्षों से संजय और अभय रंगमंच कला की ज्योत जलाए हुए हैं। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि संजय और अभय की इस मुहिम को अब तक प्रशासन और जन प्रतिनिधियों का सहयोग नहीं मिल सका।

विरासत में मिला है दोनों भाइयों को रंगमंच कला का गुर :-
आज से 40 वर्ष पूर्व मुंगेर के बरियारपुर जैसे कस्बा में गांव के युवक बुजुर्गो के सहयोग से बांस का मंच बनाकर नाटक का मंचन किया करते थे । इसी क्रम में वर्ष 1978 में
बरियारपुर के दो सगे भाई अभय और संजय रंगमंच से बाल कलाकार के रूप में रंगमंच से जुड़े। कालांतर में रंगमंच समृद्ध होता गया और इसका रूप लघुनाटक में परिवर्तित हो गया। संजय और अभय कहते हैं कि अभिनय की सीख उन्हें माता पिता से मिली। पिता अंग्रेजों के समय में नाटक कलाकार थे, तो माता रेडिया कोलकता की कलाकार थी।संजय और अभय बाद में इप्टा से जुड़े। बाद में दोनों भाईयों ने साथी कलाकारों के साथ मिल कर अंग नाट्य मंच की स्थापना की। वर्ष 2000 में इप्टा छोड़कर अंग नाट्य मंच नामक संस्था का गठन किया। यह मंच लोक कलाओं को समर्पित था। इसी के साथ वर्ष 2001 से बरियारपुर में अखिल भारतिय बहुभाषीय लघुनाटक और लोकनृत्य की प्रतियोगिता की शुरुआत की गई। इसमें लगभग 25 राज्यों की टीम आने लगी और बरियारपुर का नाम राष्ट्रीय रंगमंच के मानचित्र पर अंकित हो गया। बरियारपुर में हर वर्ष होने वाले 3 दिवसीय नाट्य महोत्सव में एक मिनी भारत बरियारपुर में बस जाता है। यह आयोजन लगातार 19 वर्ष से अनवरत रूप से जारी है।
परिवार की तीन पीढ़ी का है रंगमंच काला से जुड़ाव :-
आर्थिक कठिनायों से गुजरते हुए भी संजय और अभय नाटक का मंचन करते आ रहे हैं। अपनी पत्नी के साथ बच्चों को भी रंगमंच से जोड़ा। नाती पोते भी रंगमंच से जुड़ गए हैं । अंग नाटय संस्था का बाल कलाकार संजय कुमार का पुत्र अर्पित मंच में अभिनय के साथ जी टीवी के रियल्टी शो 2013 के सुपर 18 में पहुंच कर अंग क्षेत्र का मान बढ़ा चुका है। इनकी दोनों बेटियां तथा दामाद भी रंगमंच के साथ जुड़े हुए हैं।
रंगमंच कला के क्षेत्र में विभिन्न राज्यों में संजय और अभय को 200 से ज्यादा पुरस्कार अब तक मिल चुके हैं। जिनमें प्रमुख है :
-कुरुक्षेत्र हरियाणा का 2018 में गुरु द्रोण सम्मान :-
अंग नाट्य मंच प्रत्येक वर्ष फरवरी में अंग नाट्य यज्ञ का आयोजन करवाता है ।जिसमें भारत के 18 राज्यों से 22 नाट्य दल बरियारपुर आकर प्रतियोगिता में शामिल होते हैं। इस संबंध में अंग नाट्य मंच के संयोजक संजय कुमार ने कहा कि लोक कलाओं के प्रति समर्पित यह संस्था लगातार 19 वर्षों से अखिल भारतीय बहुभाषी लोकगीत, लोकनृत्य, नुक्कड़ नाटक, नाटक,रंग जुलुश, रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करवाते आ रही है । इस वर्ष फरवरी में आयोजित तीन दिवस के नाट्य महोत्सव में जिसमें 19 राज्यों की टीम ने हिस्सा लिया था। इस वर्ष भी 7 फरवरी से 9 फरवरी तक बीसवां अंग नाट्य यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इसमें भारत के 23 राज्यों की नाट्य दल भाग ले रहे हैं।

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