मासिक कवि गोष्ठी का आयोजन :-
“धूप में तपती हुई शिशु को आंचल की छांव देती मां : डॉ. महेशचंद्र
हवेली खड़गपुर।
बांस का डलिया बिनती हुई / धूप में तपती हुई / शीशु को आंचल की छाव देती….. मार्मिक कविता की पंक्तियां सुनाकर डॉ महेश चंद चौरसिया ने श्रोताओं को भाव बिहल कर दिया। वे खड़गपुर के साहित्यिक मंच जागृति द्वारा आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उक्त पंक्ति सुना रहे थे। युवा कवि प्रदीप पाल ने इंसानियत की शिनाख्त करते हुए जनवादी रचना “हर इंसान में है, रब की झलक / हम इबादत की बात करते हैं…. सुना कर समाज में फैले अंधविश्वास को इंगित करने का प्रयास किया। वही जागृति मंच के संस्थापक कभी ज्योतिष चंद्र ने मां के आलिंगन से जुड़े शिशु के आह्लाद को बड़ी सुंदरता से वर्णित किया। तो चर्चित युवा कवि राजकिशोर केशरी ने “भिखारिन बुढ़िया” के माध्यम से सामाजिक विडंबना का मार्मिक चित्रण कर खूब वाहवाही लूटी।
काव्य गोष्टी का शुभारंभ कवि पुरुषोत्तम शास्त्री के गणेश वंदना से हुआ। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से मौजूदा दौर की राजनीति विद्रूपता पर तंज कसा। तो बरियारपुर से पधारे गजलकार शशि आनंद अलबेला ने “वक्त के अल्फाज भी बदलते हैं / दर्द के दरिया से जब गुजरते हैं….. कुछ यू सुनाया शमां बंध गया। लघु कथाकार संजीव प्रियदर्शी ने अपनी गरिमामय संचालन से मंच को सुशोभित किया और सुनाया “नालंदा का ज्ञान सरोवर / विक्रमशिला बिहार हूं / हां, मैं जनक अश्वघोष का बिहार हूं….।
इनके अलावा कवि सुबोध मेहता, प्रो. रघुनाथ केशरी, अनिल कुमार सिंह आदि साहित्य सुधिजनों की उपस्थिति से काव्य गोष्टी की गरिमा बनी।