देवोत्थान एकादशी : क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं भगवान विष्णु ,
तारापुर।
देवोत्थान एकादशी को लेकर बाजार में गन्ना व फल का बाजार अहले सुबह से ही सज गई है।श्रद्धालु घर में भगवान विष्णु की पूजा करने को लेकर सवेरे से ही बाजार पहुंचकर गन्ना,शकरकंद, सुथनी,केला,सेब व अन्य पूजन सामग्री खरीदारी करते देखे गये। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन देव को उठाने की प्रथा को निभाने के लिए श्रद्धालुओं को पूरी आस्था व निष्ठा के साथ घर व घर के आंगन की साफ सफाई करते देखा गया।आज संध्या विधि विधान से पूजा के बाद सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जायेगा।आज के दिन ही श्रद्धालु तुलसी विवाह के रश्म को निभायेंगे।
गुरूधाम के वेदाचार्य पंडित राजेंद्र झा के बताते हैं कि आज को देवउठनी एकादशी है। यह सभी 24 एकादशी में सबसे शुभ और मंगलकारी है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाता है, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी रश्म निभाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय भगवान श्री हरि से लक्ष्मी जी ने पूछा, हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों- करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले, देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता है।
कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।